Monday, July 9, 2012

सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना safar safar hai mera intzar mat karna sahil sehri sahil sahri

सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना.....साहिल सहरी


मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर 
सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना
हिंदी उर्दू साहित्य मे दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई  शख्स हो जिस ने ये शेर न सुना हो ये मशहूर शेर साहिल सहरी नैनीताली का है जिन्होंने कभी दिमाग  का कहना नहीं माना हमेशा दिल का कहना ही किया उसी दिल ने आज उनके साथ बेवफाई की और धड़कन बंद हो जाने के सबब आज सुब्ह ८.30 बजे  उनका निधन हो गया... अल्लाह उन्हें जन्नत मे ऊंचा मुकाम अता फरमाए
साहिल सहरी का जन्म 4 नवम्बर 1949  को नैनीताल में हुआ उनका असली नाम रहीम खान था उनके पिता रहमत अली खान भी एक उस्ताद शायर थे और अहकर देहलवी तखल्लुस फरमाते थे क्युनके उनकी माँ और साहिल सहरी की दादी पुरानी दिल्ली के एक इल्मी अदबी बाजौक घराने से तआल्लुक रखती थी इसलिए उन्होंने अपने तखल्लुस में नैनीताल मे पैदा होते हुए भी दिल्ली की निस्बत को प्राथमिकता दी इस तरह ये बात दलील के साथ कही जा सकती है कि साहिल सहरी को शायरी का ज्ञान बिरासत में मिला और शायरी उनके खून में शामिल थी.
साहिल सहरी के लिए ये बात भी कही जाती थी  के जो लोग उनके पास उठे बैठे तो शायर हो गए तो भला साहिल सहरी साहिब की पत्नि उनके प्रभाव से कैसे बचतीं साहिल सहरी की पत्नि निशात साहिल ने भी उनकी रहनुमाई में बड़ी पुख्ता शायरी की है 
उनकी औलादों में 6  बेटियां 1 बेटा है. एक बहुत पुरानी कहावत है के मछली के बच्चों को तैराकी सीखनी नहीं पड़ती ये हुनर उनमे पैदाइशी होता है उनकी औलादों में भी शायरी के गुण जन्मजात पाए गए और उनकी बेटियों ने वालिद के नक़्शे क़दम पर ही चलते हुए हमेशा मेआरी शायरी की उनकी एक बेटी तरन्नुम निशात ने अपने मेंआरी कलाम से अदब की खूब खिदमत की और शादी के बाद अपने परिवार को समय देने के  कारण खुद को मुशायरों से दूर कर लिया लेकिन शेर अब भी कहती हैं. उनकी छोटी बेटी नाजिया सहरी इस समय  मुशायरों में बहुत कामयाब शायरा है. तथा पूरे भारत के कवि सम्मेलनों और मुशायरों उनको उनको पसंद किया जाता है.
मरहूम साहिल सहरी से मेरी बड़ी कुर्बत थी वो मुझ से बहुत मुहब्बत करते थे हमेशा मेरा होसला बढ़ाते थे.और जब देहली आते तो ज़रूर मुलाक़ात करते.उनसे मेरी  पहली मुलाक़ात तब हुई थी जब मैं ने और हामिद अली अख्तर ने एक कुल हिंद मुशायरा व कवी सम्मलेन "एक शाम डाक्टर ताबिश मेहदी के नाम " दिल्ली में कराया था जिसमे वो अपने बेहद अज़ीज़ शागिर्द जदीद लहजे के मुनफ़रिद शायर व् कवि और उत्तरांचल पावर कारपोरेशन में  DGM  के पद पर कार्यरत जनाब इकबाल आज़र के साथ तशरीफ़ लाये थे जिन पर वो बहुत फख्र करते थे क्यूँ कि  इकबाल आज़र साहेब में एक खास बात ये है के वो ब यक वक़्त उर्दू और हिंदी भाषा में शायरी करते हैं जो के एक व्यक्ति का दायें और बाएं हाथ से लिखने जैसा  बेहद कठिन काम है लेकिन इकबाल आज़र  साहेब उसको उतनी ही आसानी से कर लेते है जितनी आसानी से नट रस्सी पर सीधा चलता है.
साहिल सहरी साहब ने मुझे बहुत से मुशायरों में खुद भी बुलाया और  दूसरी जगह भी प्रमोट किया ये कह कर के "अच्छी शायरी  को अच्छे  लोगों तक पहुंचना चाहिए ये हम अदीबों की ज़िम्मेदारी है मैं स्वयं  भी और मेरी टूटी फूटी शायरी भी उनके इस सच्चे जज्बे की हमेशा शुक्रगुज़ार रहेगी.स्वर्गीय साहिल सहरी  बड़े साफ़ दिल बड़ी साफ़ साफ़ बात करने वाले इंसान थे किसी तरह की मसलहत {diplomacy}और गीबत {निंदा} को बिलकुल पसंद नहीं करते थे 
एक बार उनका यही मिसरा " सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना" तरह के तौर पर दिया गया जिस पर मैं ने कुछ यूँ गिरह लगायी जो उनके इस बड़े शेर से बिलकुल उलट थी के 
ये बात सच है मगर कह के कौन जाता है 
" सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना" आदिल रशीद{2005}
 कुछ "अजब से लोगों ने"  कुछ "अजब से अंदाज़" में उनको ये शेर सुनाया और उनको "कुछ अजब " से मतलब समझाने चाहे उन्होंने उन्हें कोई भी उत्तर दिए बिना जेब से मोबाइल निकाल कर उन  के सामने ही मुझे फ़ोन लगाया और आदत अनुसार हँसते हुए कहा "बरखुरदार मुबारक हो हमारा रिकॉर्ड तोड़ दिया" मैं सटपटा गया और घबराते हुए मैं ने कहा  "उस्ताद मैं समझा नहीं" तो उन्होंने हँसते हुए बगैर किसी का नाम लेते हुए कहा " कुछ लोग मुझे  तुम्हारा ये शेर सुना रहे हैं जो तुमने मेरे मिसरे पर मिसरा लगाया है मैं ने सोचा के तुमने अच्छा काम किया है तो इनके सामने ही तुम्हे मुबारकबाद दे दूँ" 
मेरे उस वक़्त भी और बाद में भी कई कई बार इल्तिजा {प्रार्थना}करने पर भी उन्होंने मुझे उन "अजीब से लोगों "के नाम कभी नहीं बताये और अब अगर वो उनके नाम बताना भी चाहें तो बता नहीं सकते क्यूँ के रूहें बोलती नहीं उनको  अपनी बात कहने के लिए जिस्म  की ज़रुरत होती है.और जिस्म तो आज सुपुर्दे खाक हो गया 
मैं ने जब-जब उनसे ऐसे "अजीब आदमी नुमा प्राणियों" के विषय में बात की उन्होंने यही कहा के आदिल मियां तुम अपना काम {साहित्य सेवा} करते रहो इस साहित्य के सफ़र में तुमको अभी बहुत से अजीब अजीब प्राणी मिलेंगे 
साहिल सहरी भी पेशे से घडी साज़ थे और मैं भी पेशे से घडी साज़. एक बार जब  मैं ने उन्हें अपना ये शेर सुनाया 
''औरों की घड़ियाँ हमने संवारी हैं रात दिन 
और अपनी इक घडी की हिफाज़त न कर सके"
तो उनकी आँख नम हो गई और उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख कर मुबारकबाद दी और कहा मुझे ख़ुशी के साथ अफ़सोस है  आदिल रशीद कि ये शेर मुझे कहना चाहिए था.
मरहूम साहिल सहरी सच्चे शायर सच्चे इंसान थे उन्होंने कभी मुशायरे पढने के लिए जोड़ तोड़ की राजनीती नहीं की,कभी दाद हासिल करने के लिए अपने ही बन्दों द्वारा फरमाइश की पर्ची भेजने का भोंडा ढोंग भी नहीं किया वो अपने आप को संतुष्ट करने के लिए शेर कहते थे.अच्छे शेर कहने और सुनने का उन्हें जूनून था अक्सर रात के पिछले पहर उनका फोन आ जाता और हमेशा की तरह  वही एक जुमला होता "भाई  कोई अच्छा शेर सुना दो" जब  मैं अपना या अपने हाफ़िज़े में से किसी और का कोई अच्छा शेर उन्हें सुना देता तो एक लम्बी ठंडी सांस लेते हुए कहते अब नींद आ जायेगी वो अक्सर शेर कहने के लिए पूरी पूरी रात जागते  इसी लिए उन्होंने अपने एक शेर मे कहा भी कि  
ये हमसे पूछो के किस तरह शेर होते हैं
के हम सहर की अजानो के बाद सोते हैं
साहिल सहरी के उस्ताद कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" थे इसी लिए वो सहरी लिखते थे. साहिल सहरी कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" जिन्हें सब "आली जा " कहते थे के बेहद अज़ीज़ शागिर्द थे जिसका ज़िक्र आली जा ने यादो का जश्न में बड़ी ही मुहब्बत से किया है.जो लोग आली जा की ज़िदगी में आली जा से एक मुलाक़ात करने या आली जा का शागिर्द होने के लिए साहिल सहरी के आगे पीछे घूमते थे आली जा की आँखे बंद होते ही उन्ही लोगों ने साहिल सहरी  के पीछे से गाल बजाने शुरू कर दिए लेकिन उनके मरते दम तक उनके सामने नज़रे उठाने कि हिम्मत न कर सके.
 साहिल सहरी को हमेशा इस बात का गिला रहा के लोगों ने उनसे लिया तो बहुत कुछ मगर जो उनका हक था वो तक कभी नहीं दिया. कई ऐसे कच्ची  मिटटी के दीये जिन्हें साहिल सहरी ने आफ़ताब{सूरज जैसा प्रकाशमान} किया था मौक़ा पड़ने पर उन्होंने अपने मुहसिन{अहसान करने वाला} का हाथ जलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
साहिल सहरी साहिब से यूँ तो मशवरा करने वालों कि गिनती बहुत ही जियादा है लेकिन चन्द  शागिर्द जिनका नाम साहिल सहरी साहिब बड़े ही फख्र से लेते थे उनमे ख्याल खन्ना कानपुरी,मशहूर नाजिम ऐ मुशायरा और शायर एजाज़ अंसारी दिल्ली,इकबाल आजर देहरादून,अमर साहनी फरीदाबाद वसी अहमद वसी फरुखाबाद,अबसार सिद्दीकी खटीमा शकील सहर एटवी, के नाम काबिले ज़िक्र हैं .
उनका एक ग़ज़ल संग्रह "सफ़र सफर है" 2005 में प्रकाशित होकर मशहूर हो चूका था और उनकी ज़िन्दगी में ही उनके अज़ीज़ शागिर्द इकबाल आजर साहेब के हाथो उनकी दूसरी किताब पर काम शरू हो चूका था जिसे अब फख्रे साहिल सहरी जनाब इकबाल आजर "कुल्लियाते साहिल सहरी " के नाम से मुरत्तब {संकलित}कर रहे हैं.जो जल्द ही प्रकाशित होगा 
साहिल सहरी को उर्दू हिंदी मे उनके योगदान के लिए अनेको सम्मान मिले दूरदर्शन आकाशवाणी ऍफ़ एम् चैनलों पर उनका कलाम प्रसारित हुआ तथा भारत और भारत से बाहर पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुआ        
एक समय पर मुशायरों पर राज करने वाला बड़ा शायर मुशायरे के माईक से शेर की तरह दहाड़ने वाला शायर {जिसकी नकल करके बहुत से शायर मुशायरों में बहुत कामयाब हुए} अपनी बढती उम्र के साथ रफ्ता रफ्ता मुशायरों से दूर होता गया और आखिरकार आज दुनिया से भी दूर हो गया लेकिन अगर वो चाहे भी तो साहित्य और साहित्य प्रेमियों के दिल से दूर नहीं हो सकता उनके कहे अशआर अदब पारों में हमेशा महफूज़ {सुरक्षित} रहेंगे  आदिल रशीद 9 जुलाई 2012 e-mail:
aadilrasheed.tilhari@gmail.com


साहिल सहरी अपने अज़ीज़ शागिर्द इकबाल आज़र के साथ आकाशवाणी के लिए एक प्रोग्राम की रिकार्डिंग के अवसर पर 

8 comments:

नीरज गोस्वामी said...

आदिल भाई आपने साहिल शेहरी साहब के बारे में बहुत अच्छा लिखा है...इतने बड़े शायर का यूँ चुपचाप से हमारे बीच से चले जाना अखरता है...खुदा उनकी रूह को करवट करवट जन्नत नसीब करे...अगर उनकी कोई किताब हिंदी में छपी हो तो मुझे बताएं मैं उसका ज़िक्र अपनी " किताबों की दुनिया" श्रृंखला में करना चाहूँगा.

नीरज

बलराम अग्रवाल said...

आदिल भाई, आपने तहे-दिल से उन्हें याद किया है। यह वाकई दुखद है कि जो लोग उनका सहारा लेकर आगे बढ़े और बड़े(?) हुए, वे ही उन्हें भूल गए। यह दुनिया लाभ-हानि का गणित देखकर अपनाने और त्यागने वालों से भरी पड़ी है। इसीलिए तो साहिर ने कहा था--ये दुनिया अगर (मिट्टी में) मिल भी जाए तो क्या है!

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

सादर नमन !

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

सादर नमन !

girish pankaj said...

ek bade shayar ke nidhan kee jankaree milee. hum log yahee bebas ho jate hain.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

सहरी साहब को विनम्र श्रधांजलि.
''औरों की घड़ियाँ हमने संवारी हैं रात दिन
और अपनी इक घडी की हिफाज़त न कर सके"
इस शेर ने जिन्दगी से रूबरू करा दिया. दाद स्वीकारें.

Ila said...

उन्हें सादर नमन! उनकी शायरी हमें उनकी याद दिलाती रहेगी।
इला

निर्मला कपिला said...

शायरी की दुनिया के लिये बहुत बडी क्षति है।सहरी साहब को विनम्र श्रधांजलि.