by Aadil Rasheed on Wednesday, August 22, 2012 at 2:17pm ·
मुसलमानों ने गुरूद्वारे में नमाज़ पढ़ी.....आदिल रशीद
जाने कैसी पसन्द रखता है
अपनी पलकें वो बन्द रखता है
शीन काफ निजाम का ये शेर इस बार भी बहुत याद आया जब कल चाँद रात को बच्चों को कपडे दिलाने बाज़ार ले गया.और पूरी कोशिश करने के बाबजूद सब से छोटी बेटी अरनी सहर को हर ईद की तरह इस ईद पर भी संतुष्ट न कर सका क्यूँ की उसकी पसंद इतनी बारीक है के उसकी पसंद का सूट दिलाने में माँ बाप भाई बहिन और दुकानदार सब को पसीने आ जाते हैं बड़ी मुश्किल से किसी तरह उसे मना मुना के लगभग 5 बजे वापसी हुई और घर आ कर उसकी माँ ने और मैं ने एक लम्बी तसल्ली की सांस ली जैसे कोई जंग जीत कर आये हों.
मग़रिब (संध्या) के वक़्त चाँद रात से मुत्तालिक (सम्बंधित) 1988 की तरही ग़ज़ल का एक शेर:
ईद का चाँद वो भी देखेंगे
आइये चल के चांदनी देखें
फेसबुक पर पोस्ट किया ही था के मोबाइल कि घंटी बजी देखा कारी साहेब का फोन है मैं समझा के चाँद रात है चाँद की मुबारकबाद देने के लिए फ़ोन आया होगा फ़ोन उठाते ही उन्होंने पूछा आप कहाँ हो मैं ने अजराहे मजाक (मजाक में )कहा हुज़ूर बेगम की पनाह में यानि घर में हूँ वो बोले ज़रा नीचे उतर कर देखना तो फ़ोन आया है कि हमारे घर में चोरी हो गयी है मैं फ़ौरन नीचे उतर कर गया देखा भीड़ लगी हुई है उनके घर का ताला टूटा पड़ा है और घर का सामान बिखरा पड़ा है. कारी साहेब लगभग एक घंटे बाद आ गए साथ में भाभी भी थी घर की तमाम बिखरी हुई चीज़ें उठाई गयी कारी साहेब ने बताया अल्लाह का करम रहा के जेवर पैसा बगैरा सब भाभी साथ ले गयीं थी बेचारे बदनसीब चोर को सिवाय मायूसी के कुछ और हाथ न लगा होगा अलबत्ता मेरे कुण्डी,ताले, दरवाज़े और तोड़ गया
मुझे उस चोर पर बड़ा गुस्सा आया के किसी की चाँद रात और ईद ख़राब करके उसे क्या मिला कितने ज़ालिम होते हैं ये चोर अल्लाह इन्हें बड़ी सख्त सजाएँ देने वाला है तभी कारी साहेब ने एक थैले की तरफ देख कर कहा ये किस का थैला है ये हमारा नहीं है एक साहेब जो पास ही खड़े थे और ज़बान और दिमाग दोनों ही जियादा चला रहे थे बोले अगर ये आपका नहीं है तो ज़रूर चोर का ही होगा और वो कितनी प्लानिंग से आया था बच्चों के मैले कुचैले कपडे थैले में भरकर ताकि किसी को शक न हो उनकी इस बात से अंदाज़ा हुआ के वो एक ज़हीन जासूसी दिमाग भी रखते हैं
एक साहेब ने वो थैला पलट दिया उसमे 5-6 साल उम्र की लड़की की तीन चार फ्राक थीं मैली कुचैली फटी फटाई सी मुझे तो उन मैले कुचैले कपड़ो में मजबूर बाप की गरीबी नज़र आई कितना मजबूर होगा वो बाप जो ईद पर ये घिनौना काम करने निकल पड़ा ऐसे में मुझे अपना एक शेर याद आया
मुफलिस ने अपनी बेटी से इस बार भी कहा
इस ईद की भी ईदी उधारी है मेरे पास
अल्लाह फरमाता है "हमने कुछ अमीर इसलिए बनाये के वो गरीबों की मदद करें" इस्लाम में सदका फितरा और ज़कात गरीब लोगों की मदद के लिए ही बनाये गए हैं ईद की नमाज़ से पहले अपनी जान का सदका निकालना फितरा कहलाता है वो इस बार ईद पर प्रति व्यक्ति चालीस रुपये था.
अगर आप के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी से अधिक है या आपके पास या इनमे से किसी एक के मूल्य के बराबर रुपया है या एक साल से अधिक समय से बैंक में पड़ा है तो इस्लामी कानून के मुताबिक उस मूल्य का 2.50 प्रतिशत ज़कात आप पर वाजिब है और ज़कात का पैसा हर ईदउल फ़ित्र (रमजान के बाद आने वाली ईद) पर नमाज़ से इतना पहले गरीबों में बाँट दिया जाता है ताकि वो गरीब अपनी ईद की तय्यरियाँ कर सके अपने बच्चों के कपडे आदि बनवा सके.
ज़कात इस्लाम के पांच फ़र्ज़ (अनिवार्य नियम) कलमा ,नमाज़,रोज़ा,हज और ज़कात में से एक है जिसे हर हाल में पूरा करना ही होता है वर्ना आप मुसलमान नहीं अल्लाह इनका बड़ी सख्ती से हिसाब लेने वाला है.
चाँद रात तो साहेब चाँद रात होती है इसलिये चाँद रात को जल्दी सोने का तो कोई मतलब ही नहीं लगभग 4 बजे तक जागते रहे सुब्ह होते ही दोस्तों के फ़ोन आने शुरू हो गए बड़ा अच्छा लगता है इस दिन सब रूठे हुए एक दुसरे को कॉल करते है ईद मुबारक कहते हैं और गिले शिकवे दूर हो जाते हैं इस्लाम में तीन दिन से जियादा किसी से नाराज़ रहने को मना भी किया गया है
नमाज़ से लौटा तो ख़बरें सुनने के लिए टी. वी खोला तो देखा के सभी चैनलों पर अजमेर में जन्नती दरवाज़े के खुलने का लाइव टेलीकास्ट चल रहा हैं (दरगाह अजमेर शरीफ में एक दरवाज़े का नाम जन्नती दरवाज़ा है) सभी चैनल एक दुसरे से बढ़ चढ़ कर दिखा रहे थे.
मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा मेरे बचपन के दोस्त धर्मपाल सिंह धर्मी का जोशीमठ उत्तराखंड से फ़ोन था वो कालागढ़ से टिहरी वहां से उत्तरकाशी होता हुआ आजकल जोशीमठ में सरकारी जाब में है फ़ोन उठाते ही अपने खास अधिकारिक लहजे में (जिसे मैं यहाँ लिख भी नहीं सकता) ईद की मुबारकबाद दी और बताया के तुझे तो पता है यहाँ जोशीमठ में एक भी मस्जिद नहीं है लेकिन कुछ मुसलमान रहते हैं इसलिए जुमे और ईद की नमाज़ एक मैदान में होती है इस बार हलकी हलकी बूंदा बांदी सुब्ह से ही हो रही थी नमाज़ के समय तेज़ हो गयी और वो मैदान जहाँ नमाज़ होनी थी वहां चारो ओर पानी ही पानी भर गया अब नमाज़ कैसे हो ऐसे में एक गुरूद्वारे के प्रबंधक श्री बूटा सिंह ने ये आदेश दिया के गुरूद्वारे के हाल और मुसाफिर खाने को नमाजियों के लिए खोल दिया जाए और फिर ये एतिहासिक पल आया के गुरूद्वारे में नमाज़ हुई.
खबर बहुत बड़ी थी और बिलकुल सही वक़्त पर उस महाशक्ति (जिसे हम कई नामों से पुकारते हैं) ने अपना करिश्मा दिखाया जब कुछ बेवकूफ लोग मुसलमान और इस्लाम के लिए भारत को सुरक्षित नहीं बता रहे और अफवाहें फ़ैलाने का काम कर रहे हैं.
उस महाशक्ति ने एक बार फिर बताने की कोशिश की के मैं ने तुम सब को एक बनाया था धर्म की दीवारे तो तुमने खुद खड़ी की हैं. अब इनको गिरना भी तुमको ही होगा
उस महाशक्ति ने ये सन्देश भी दिया के देखो मैं ने नमाज़ के लिए गुरूद्वारे के दरवाज़े खोल दिए अब इसके बाद भी तुम्हारी अक्ल तुम्हारी सोच के दरवाज़े न खुले तो तुमसे जियादा दुर्भाग्यशाली कौन है अभी भी वक़्त है समझ जाओ मैं एक ही हूँ तुम सब मेरे बन्दे हो आपस में भाई भाई हो सब एक हो.
मैं ने उसको बोला के आप इसके लिए किसी पत्रकार से सपर्क साधो इस समय इस तरह की ख़बरें समाचार पत्रों में व चैनलों पर आनी चाहिए. जब एक तरफ साम्प्रदायिक ताकतें अफवाहों का बाज़ार गर्म किये हुए हैं ऐसे में ये शुभ समाचार भारत में शांति व्यवस्था बनाये रखने में बहुत मददगार साबित होगा उसने वहां के पत्रकारों से संपर्क साधा और ये खबर अगले दिन हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुई"
इस खबर से मुझे उतनी ख़ुशी नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी अगर मैं एडिटर होता और मेरा बस चलता तो इस खबर को अखबार के फ्रंट पेज पर इतनी बड़ी हेडलाईन के साथ प्रकाशित करता के हमारे दुश्मन मुल्क अपनी अपनी राजधानी से भी इसको पढ़ लेते और कुछ सबक लेते और मेरे इस शेर के अर्थ समझ लेते जो मैं ने बड़े गर्व से कहा है:
हम जो हिन्दोस्तान से जाते
बच गए नाक कान से जाते
आपसी भाईचारे की ऐसी मिसाल सिर्फ और सिर्फ हिन्दोस्तान में ही मिल सकती है. लेकिन एक ओर से मुझे निराशा भी हुई के जब इलेक्ट्रोनिक मिडिया ने इस खबर को नहीं दिखाया हाँ सभी चैनल दिन भर अजमेर में जन्नती दरवाज़े के खुलने की खबर दिखाते रहे.जब के अगर इलेक्ट्रोनिक मिडिया इस खबर को दिखाता तो बहुत दूर तक ये बात लोगों तक पहुँचती और अफवाहों पर विराम लगता इस खबर के एक हिंदी अखबार में खबर प्रकाशित होने से क्या होगा अखबार आजकल पढता कौन है वो तो बस जैसे तैसे चल रहे हैं सरकारी विज्ञापन पर मेरी नज़र में ये खबर तो सभी चैनलों पर दिन भर रात भर हफ्ते भर दिखाई जानी चाहिए थी.
मैं सोचने लगा कहाँ हैं वो लोग जो आसाम बर्मा बैंगलोर की खबरे शेयर पे शेयर कर के हमारे भारत में ज़हर फैलाने का काम कर रहे थे, कहाँ है वो शक्तियां जो भारत के हिन्दू मुस्लिम सिख समुदाय को लडवाना चाहती हैं और भारत को यू.पी बिहार की सीमाओं में बाटना चाहती हैं विदेशी ताकतों के इशारों पर अवाम को मंदिर मस्जिद के झगडे में डालकर तरक्की के रास्ते से भटकाती हैं.
ऐसी मिसालें जो देश के हित में हों उसे लोग शेयर नहीं करते बस अफवाहों को फ़ैलाने में ही बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं लेकिन जहाँ इस तरह के घिनोने लोग हैं वहीँ शुद्ध स्वस्थ मानसिकता वाले बुद्धिजीवीयों की भी कमी नहीं है जो माध्यम का सही उपयोग करना जानते हैं फेसबुक अखबार टी.वी चैनल ब्लोगर सभी से मेरा अनुरोध है के वो अपने अपने स्तर से उन साम्प्रदायिक शक्तियों को मुंहतोड़ जवाब दें और उन्हें अल्लामा इकबाल के मशहूर ग़ज़ल "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" जिसे अनोपचारिक रूप से भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा भी हासिल है के सही अर्थ बताये
श्रीमती इंदिरा गांधी ने जब भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो राकेश शर्मा ने इस ग़ज़ल के मतले का मिसरा ऊला(पहली पंक्ति) को पढ़ा "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा"
अल्लामा इकबाल ने ये ग़ज़ल 1905 में लिखी थी और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाई थी .उस वक़्त अल्लामा इकबाल लाहौर के सरकारी कालेज में पढ़ाते थे. उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया और कहा के आपको भाषण देना है. अल्लामा इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह ग़ज़ल पूरी उमंग से गाकर सुनाई.
यह ग़ज़ल हिन्दोस्तान से प्रेम का बेहतरीन नमूना है और अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है.
1950 में मशहूर सितार वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुरों से सजाया और इस कालजयी रचना की धुन को भी अमर कर दिया.कमाल देखिये इसको लिखा एक मुसलमान ने सुरों से सजाया ब्राह्मण ने और गाया इसको पूरे भारत के अलग अलग धर्मों के लोगो ने मेरी नज़र में ये अखंड भारत के गंगा जमुनी तहज़ीब को दर्शाती हुई महान रचना है
पेश है उसी कालजयी ग़ज़ल का मतला और शेर:
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा ।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा ।।
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा ।।
जय हिंद जय भारत
आदिल रशीद

जाने कैसी पसन्द रखता है
अपनी पलकें वो बन्द रखता है
शीन काफ निजाम का ये शेर इस बार भी बहुत याद आया जब कल चाँद रात को बच्चों को कपडे दिलाने बाज़ार ले गया.और पूरी कोशिश करने के बाबजूद सब से छोटी बेटी अरनी सहर को हर ईद की तरह इस ईद पर भी संतुष्ट न कर सका क्यूँ की उसकी पसंद इतनी बारीक है के उसकी पसंद का सूट दिलाने में माँ बाप भाई बहिन और दुकानदार सब को पसीने आ जाते हैं बड़ी मुश्किल से किसी तरह उसे मना मुना के लगभग 5 बजे वापसी हुई और घर आ कर उसकी माँ ने और मैं ने एक लम्बी तसल्ली की सांस ली जैसे कोई जंग जीत कर आये हों.
मग़रिब (संध्या) के वक़्त चाँद रात से मुत्तालिक (सम्बंधित) 1988 की तरही ग़ज़ल का एक शेर:
ईद का चाँद वो भी देखेंगे
आइये चल के चांदनी देखें
फेसबुक पर पोस्ट किया ही था के मोबाइल कि घंटी बजी देखा कारी साहेब का फोन है मैं समझा के चाँद रात है चाँद की मुबारकबाद देने के लिए फ़ोन आया होगा फ़ोन उठाते ही उन्होंने पूछा आप कहाँ हो मैं ने अजराहे मजाक (मजाक में )कहा हुज़ूर बेगम की पनाह में यानि घर में हूँ वो बोले ज़रा नीचे उतर कर देखना तो फ़ोन आया है कि हमारे घर में चोरी हो गयी है मैं फ़ौरन नीचे उतर कर गया देखा भीड़ लगी हुई है उनके घर का ताला टूटा पड़ा है और घर का सामान बिखरा पड़ा है. कारी साहेब लगभग एक घंटे बाद आ गए साथ में भाभी भी थी घर की तमाम बिखरी हुई चीज़ें उठाई गयी कारी साहेब ने बताया अल्लाह का करम रहा के जेवर पैसा बगैरा सब भाभी साथ ले गयीं थी बेचारे बदनसीब चोर को सिवाय मायूसी के कुछ और हाथ न लगा होगा अलबत्ता मेरे कुण्डी,ताले, दरवाज़े और तोड़ गया
मुझे उस चोर पर बड़ा गुस्सा आया के किसी की चाँद रात और ईद ख़राब करके उसे क्या मिला कितने ज़ालिम होते हैं ये चोर अल्लाह इन्हें बड़ी सख्त सजाएँ देने वाला है तभी कारी साहेब ने एक थैले की तरफ देख कर कहा ये किस का थैला है ये हमारा नहीं है एक साहेब जो पास ही खड़े थे और ज़बान और दिमाग दोनों ही जियादा चला रहे थे बोले अगर ये आपका नहीं है तो ज़रूर चोर का ही होगा और वो कितनी प्लानिंग से आया था बच्चों के मैले कुचैले कपडे थैले में भरकर ताकि किसी को शक न हो उनकी इस बात से अंदाज़ा हुआ के वो एक ज़हीन जासूसी दिमाग भी रखते हैं
एक साहेब ने वो थैला पलट दिया उसमे 5-6 साल उम्र की लड़की की तीन चार फ्राक थीं मैली कुचैली फटी फटाई सी मुझे तो उन मैले कुचैले कपड़ो में मजबूर बाप की गरीबी नज़र आई कितना मजबूर होगा वो बाप जो ईद पर ये घिनौना काम करने निकल पड़ा ऐसे में मुझे अपना एक शेर याद आया
मुफलिस ने अपनी बेटी से इस बार भी कहा
इस ईद की भी ईदी उधारी है मेरे पास
अल्लाह फरमाता है "हमने कुछ अमीर इसलिए बनाये के वो गरीबों की मदद करें" इस्लाम में सदका फितरा और ज़कात गरीब लोगों की मदद के लिए ही बनाये गए हैं ईद की नमाज़ से पहले अपनी जान का सदका निकालना फितरा कहलाता है वो इस बार ईद पर प्रति व्यक्ति चालीस रुपये था.
अगर आप के पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी से अधिक है या आपके पास या इनमे से किसी एक के मूल्य के बराबर रुपया है या एक साल से अधिक समय से बैंक में पड़ा है तो इस्लामी कानून के मुताबिक उस मूल्य का 2.50 प्रतिशत ज़कात आप पर वाजिब है और ज़कात का पैसा हर ईदउल फ़ित्र (रमजान के बाद आने वाली ईद) पर नमाज़ से इतना पहले गरीबों में बाँट दिया जाता है ताकि वो गरीब अपनी ईद की तय्यरियाँ कर सके अपने बच्चों के कपडे आदि बनवा सके.
ज़कात इस्लाम के पांच फ़र्ज़ (अनिवार्य नियम) कलमा ,नमाज़,रोज़ा,हज और ज़कात में से एक है जिसे हर हाल में पूरा करना ही होता है वर्ना आप मुसलमान नहीं अल्लाह इनका बड़ी सख्ती से हिसाब लेने वाला है.
चाँद रात तो साहेब चाँद रात होती है इसलिये चाँद रात को जल्दी सोने का तो कोई मतलब ही नहीं लगभग 4 बजे तक जागते रहे सुब्ह होते ही दोस्तों के फ़ोन आने शुरू हो गए बड़ा अच्छा लगता है इस दिन सब रूठे हुए एक दुसरे को कॉल करते है ईद मुबारक कहते हैं और गिले शिकवे दूर हो जाते हैं इस्लाम में तीन दिन से जियादा किसी से नाराज़ रहने को मना भी किया गया है
नमाज़ से लौटा तो ख़बरें सुनने के लिए टी. वी खोला तो देखा के सभी चैनलों पर अजमेर में जन्नती दरवाज़े के खुलने का लाइव टेलीकास्ट चल रहा हैं (दरगाह अजमेर शरीफ में एक दरवाज़े का नाम जन्नती दरवाज़ा है) सभी चैनल एक दुसरे से बढ़ चढ़ कर दिखा रहे थे.
मेरे मोबाइल की घंटी बजी और मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा मेरे बचपन के दोस्त धर्मपाल सिंह धर्मी का जोशीमठ उत्तराखंड से फ़ोन था वो कालागढ़ से टिहरी वहां से उत्तरकाशी होता हुआ आजकल जोशीमठ में सरकारी जाब में है फ़ोन उठाते ही अपने खास अधिकारिक लहजे में (जिसे मैं यहाँ लिख भी नहीं सकता) ईद की मुबारकबाद दी और बताया के तुझे तो पता है यहाँ जोशीमठ में एक भी मस्जिद नहीं है लेकिन कुछ मुसलमान रहते हैं इसलिए जुमे और ईद की नमाज़ एक मैदान में होती है इस बार हलकी हलकी बूंदा बांदी सुब्ह से ही हो रही थी नमाज़ के समय तेज़ हो गयी और वो मैदान जहाँ नमाज़ होनी थी वहां चारो ओर पानी ही पानी भर गया अब नमाज़ कैसे हो ऐसे में एक गुरूद्वारे के प्रबंधक श्री बूटा सिंह ने ये आदेश दिया के गुरूद्वारे के हाल और मुसाफिर खाने को नमाजियों के लिए खोल दिया जाए और फिर ये एतिहासिक पल आया के गुरूद्वारे में नमाज़ हुई.
खबर बहुत बड़ी थी और बिलकुल सही वक़्त पर उस महाशक्ति (जिसे हम कई नामों से पुकारते हैं) ने अपना करिश्मा दिखाया जब कुछ बेवकूफ लोग मुसलमान और इस्लाम के लिए भारत को सुरक्षित नहीं बता रहे और अफवाहें फ़ैलाने का काम कर रहे हैं.
उस महाशक्ति ने एक बार फिर बताने की कोशिश की के मैं ने तुम सब को एक बनाया था धर्म की दीवारे तो तुमने खुद खड़ी की हैं. अब इनको गिरना भी तुमको ही होगा
उस महाशक्ति ने ये सन्देश भी दिया के देखो मैं ने नमाज़ के लिए गुरूद्वारे के दरवाज़े खोल दिए अब इसके बाद भी तुम्हारी अक्ल तुम्हारी सोच के दरवाज़े न खुले तो तुमसे जियादा दुर्भाग्यशाली कौन है अभी भी वक़्त है समझ जाओ मैं एक ही हूँ तुम सब मेरे बन्दे हो आपस में भाई भाई हो सब एक हो.
मैं ने उसको बोला के आप इसके लिए किसी पत्रकार से सपर्क साधो इस समय इस तरह की ख़बरें समाचार पत्रों में व चैनलों पर आनी चाहिए. जब एक तरफ साम्प्रदायिक ताकतें अफवाहों का बाज़ार गर्म किये हुए हैं ऐसे में ये शुभ समाचार भारत में शांति व्यवस्था बनाये रखने में बहुत मददगार साबित होगा उसने वहां के पत्रकारों से संपर्क साधा और ये खबर अगले दिन हिन्दुस्तान में प्रकाशित हुई"
इस खबर से मुझे उतनी ख़ुशी नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी अगर मैं एडिटर होता और मेरा बस चलता तो इस खबर को अखबार के फ्रंट पेज पर इतनी बड़ी हेडलाईन के साथ प्रकाशित करता के हमारे दुश्मन मुल्क अपनी अपनी राजधानी से भी इसको पढ़ लेते और कुछ सबक लेते और मेरे इस शेर के अर्थ समझ लेते जो मैं ने बड़े गर्व से कहा है:
हम जो हिन्दोस्तान से जाते
बच गए नाक कान से जाते
आपसी भाईचारे की ऐसी मिसाल सिर्फ और सिर्फ हिन्दोस्तान में ही मिल सकती है. लेकिन एक ओर से मुझे निराशा भी हुई के जब इलेक्ट्रोनिक मिडिया ने इस खबर को नहीं दिखाया हाँ सभी चैनल दिन भर अजमेर में जन्नती दरवाज़े के खुलने की खबर दिखाते रहे.जब के अगर इलेक्ट्रोनिक मिडिया इस खबर को दिखाता तो बहुत दूर तक ये बात लोगों तक पहुँचती और अफवाहों पर विराम लगता इस खबर के एक हिंदी अखबार में खबर प्रकाशित होने से क्या होगा अखबार आजकल पढता कौन है वो तो बस जैसे तैसे चल रहे हैं सरकारी विज्ञापन पर मेरी नज़र में ये खबर तो सभी चैनलों पर दिन भर रात भर हफ्ते भर दिखाई जानी चाहिए थी.
मैं सोचने लगा कहाँ हैं वो लोग जो आसाम बर्मा बैंगलोर की खबरे शेयर पे शेयर कर के हमारे भारत में ज़हर फैलाने का काम कर रहे थे, कहाँ है वो शक्तियां जो भारत के हिन्दू मुस्लिम सिख समुदाय को लडवाना चाहती हैं और भारत को यू.पी बिहार की सीमाओं में बाटना चाहती हैं विदेशी ताकतों के इशारों पर अवाम को मंदिर मस्जिद के झगडे में डालकर तरक्की के रास्ते से भटकाती हैं.
ऐसी मिसालें जो देश के हित में हों उसे लोग शेयर नहीं करते बस अफवाहों को फ़ैलाने में ही बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं लेकिन जहाँ इस तरह के घिनोने लोग हैं वहीँ शुद्ध स्वस्थ मानसिकता वाले बुद्धिजीवीयों की भी कमी नहीं है जो माध्यम का सही उपयोग करना जानते हैं फेसबुक अखबार टी.वी चैनल ब्लोगर सभी से मेरा अनुरोध है के वो अपने अपने स्तर से उन साम्प्रदायिक शक्तियों को मुंहतोड़ जवाब दें और उन्हें अल्लामा इकबाल के मशहूर ग़ज़ल "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" जिसे अनोपचारिक रूप से भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा भी हासिल है के सही अर्थ बताये
श्रीमती इंदिरा गांधी ने जब भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो राकेश शर्मा ने इस ग़ज़ल के मतले का मिसरा ऊला(पहली पंक्ति) को पढ़ा "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा"
अल्लामा इकबाल ने ये ग़ज़ल 1905 में लिखी थी और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाई थी .उस वक़्त अल्लामा इकबाल लाहौर के सरकारी कालेज में पढ़ाते थे. उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया और कहा के आपको भाषण देना है. अल्लामा इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह ग़ज़ल पूरी उमंग से गाकर सुनाई.
यह ग़ज़ल हिन्दोस्तान से प्रेम का बेहतरीन नमूना है और अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है.
1950 में मशहूर सितार वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुरों से सजाया और इस कालजयी रचना की धुन को भी अमर कर दिया.कमाल देखिये इसको लिखा एक मुसलमान ने सुरों से सजाया ब्राह्मण ने और गाया इसको पूरे भारत के अलग अलग धर्मों के लोगो ने मेरी नज़र में ये अखंड भारत के गंगा जमुनी तहज़ीब को दर्शाती हुई महान रचना है
पेश है उसी कालजयी ग़ज़ल का मतला और शेर:
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा ।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा ।।
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना ।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा ।।
जय हिंद जय भारत
आदिल रशीद
आदिल रशीद

