जाओ जाओ तुम जैसे तीन सौ साठ देखें हैं मैं ने शायद ही कोई हिंदी उर्दू बोलने वाला ऐसा हो जिस ने ये मुहावरा न बोला हो या न सुना हो
इस मुहावरे का जन्म कहाँ से हुआ कैसे हुआ इस्लामी ऐतबार से काबे मे तीन सौ साठ मन गढ़ंत बुत थे जिनको उस समय तरह तरह से पूजा जाता था और ये मानना था के अगर इनकी पूजा न की जाए तो बहुत अनिष्ट(नुकसान) हो जाएगा बाद मे उनकी पूजा छोड़ कर एक ईश्वरवाद को स्वीकार(कुबूल) करते हुए लोगों ने अल्लाह को कुबूल किया और उसकी इबादत शरू की लेकिन उनका कोई अनिष्ट नहीं हुआ
मेरा अपना ख्याल है(जो गलत भी हो सकता है) तभी से अरब मे ये जुमला किसी की धमकी पर उस से न डरने को जताने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा होगा और जब माता हिंदी ने बेटी उर्दू को जन्म दिया और उर्दू जुबान बहुत मशहूर हुई तो उर्दू हिंदी मे भी ये मुहावरा खूब इस्तेमाल होने लगा "जाओ जाओ तुम जैसे तीन सौ साठ देखें हैं मैं ने" देखें शेर
"" खाक तुम हम को बनाओगे मियां तुम जैसे
तीन सौ साठ हमें रोज मिला करते हैं"" आदिल रशीद
2 comments:
इस अद्भुत जानकारी के लिए बधाई स्वीकारें
नीरज
इस अद्भुत जानकारी के लिए बधाई स्वीकारें
नीरज
Post a Comment