Saturday, October 16, 2010

आज विजय दशमी यानी ईद है/आदिल रशीद/ aadil rasheed/17/10/2010

आज विजय दशमी यानी ईद है
रोम रोम फिर व्याकुल है
कितनी यादे सिमट कर एक कहानी सी कह रहीं हैं.आज का दिन एक खास उल्लास का दिन होता था दुर्गा पूजा रावण दहन का दिन मोज मस्ती का दिन.
बिल्कुल आज की ईद जैसा क्य़ू के आज तो मेरे बच्चों की ज़िन्दगी में केवल दो ही ईदें हैं
कालागढ मे तो मेरे बचपन मे कितनी ईदें होती थी.दुर्गा पूजा रावण दहन विजय दशमी की ईद ,होली की ईद,क्रिसमस की ईद ,रक्षा बंधन की ईद विश्वकर्मा दिवस की ईद,
15 अगस्त, 26 जनवरी, 2अक्तूबर, रविदास जयंतीकी ईद.
रविदास जयंती,15अगस्त 26जनवरी, 2 अक्तूबर को होने वाले खेलों में 100मीटर रेस में हमेशा शन्नू और शमीम को हराकर 50 पैसे क़ा पेन (गोल्ड मेडल )जीतने की ईद ऊँची कूद में हर बार शन्नू से हार जाने की ईद क्यूँ के गोल्ड मेडल जीता तो दोस्त ने ही और दोस्ती मे क्या तेरा और क्या मेरा।
अपने जन्म दिन 25 दिसम्बर पर हर बार मिसेज़ विलियम का एक ह़ी डायलाग सुनने की ईद "तुम ने मेरा क्रिसमस खराब किया था संन" क्यूँ के मैं और मेरा छोटा भाई छुट्टन 25 दिसम्बर को ह़ी पैदा हुए थे और उन्होंने पूरी रात जश्न के बजाये अस्पताल मे काटी
थी
और भी बहुत सी छोटी छोटी ईदें जैसे के शन्नू के ख़त का जवाब जाने की ईद, रश्मि गहलोत के घर की राजस्थानी कचोरी खाने की ईद ,सब दोस्तों का पैसे मिला कर डबल सेवेन या कोका कोका कोला पीने की ईद हरमहीने की पहली तारीख की ईद क्यूँ के उस तारीख को पापा को तन्खवाह मिलती थी और हमें कोई कोई तोहफा तब रोज़ एक ईद होती थी क्यूँ के ईद अरवी का शब्द (लफ्ज़ ) है स्त्रीलिंग है और  जिसके लुग्वी यानि शाब्दिक अर्थ है, ख़ुशी ,वो ख़ुशी जो रोम रोम से महसूस हो, पलट कर आने वाली ख़ुशी .
शन्नू और शमीम हमेशा रेस में हारने पर कहा करते थे के बच्चू एक दिन तुझे ज़रूर हरायेगे और ज़िन्दगी की दौड में वाकई दोनों ने
मुझे हरा दिया शन्नू 1990 में ही और शमीम अभी २महीने पहले सउदी अरब में मुझे तन्हा छोड़ गया और आज मेरी रेस सिर्फ और सिर्फ खुद से है .......आदिल रशीद (चाँद) 17/10/2010

3 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

आज पहली बार आया हूँ आपके ब्लॉग पर.
भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टि से अच्छी
रचनाएं पढने को मिलीं. ख़ास तौर पर
विजय दशमी वाले आलेख ने तो बचपन
की कितनी ही यादें ताज़ा कर दीं. बधाई.

बलराम अग्रवाल said...

मार्मिक संस्मरण है। मिसेज़ विलियम्स का डायलॉग प्यार और स्नेह से भरा है, अमरता देने वाला है। भाइयों की ओर से आपका तनहा रह जाना दिल को कचोट गया। यह पीड़ा तो उम्रभर अब रहनी ही है; लेकिन आपके दिल में उनकी यादें हैं तो क्या ग़म है।

अनुपमा पाठक said...

संस्मरण हृदयस्पर्शी है! आभार!