प्यार का सिलसिला ही कितना था
शब् को मैं जागता ही कितना था
तुझको अफ़सोस मैं ने कुछ न कहा
और तू भी खुला ही कितना था
बेवफाई का क्या करे शिकवा
तू हमारा हुआ ही कितना था
मैं ने ये कह के दिल को समझाया
वो मुझे जानता ही कितना था
आज बर्बाद हूँ तो ग़म क्यूँ है
तू मुझे टोंकता ही कितना था
ऐसे वैसों के हाथ आ जाता
दाम मेरा गिरा ही कितना था
बे सबब ही उदास हो आदिल
मिलना जुलना हुआ ही कितना था
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