ग़ज़ल
आज का बीते कल से क्या रिश्ता
झोपडी का महल से क्या रिश्ता
हाथ कटवा लिए महाजन से
अब किसानो का हल से क्या रिश्ता
सब ये कहते हैं भूल जाओ उसे
मशवरों का अमल से क्या रिश्ता
किस की खातिर गंवा दिया किसको
अब मिरा गंगा जल से क्या रिश्ता
जिस में सदियों की शादमानी हो
अब किसी ऐसे पल से क्या रिश्ता
जो गुज़रती है बस वो कहता हूँ
वरना मेरा ग़ज़ल से क्या रिश्ता
जिंदा रहता है सिर्फ पानी में
रेत का है कँवल से क्या रिश्ता
मैं पुजारी हूँ अम्न का आदिल
मेरा जंग ओ जदल से क्या रिश्ता
जंग ओ जदल =लड़ाई झगडा
आदिल रशीद
2 comments:
बहुत ख़ूब !
पूरी ग़ज़ल ही अच्छी है
हाथ कटवा लिए महाजन से
अब किसानो का हल से क्या रिश्ता
सब ये कहते हैं भूल जाओ उसे
मशवरों का अमल से क्या रिश्ता
क्या बात है!
मैं पुजारी हूँ अम्न का आदिल
मेरा जंग ओ जदल1 से क्या रिश्ता
हक़ीक़त है ,अम्न ओ आश्ती के पुजारी का जंग से क्या रिश्ता हो सकता है
दुश्मनी उस का है शेवा ,दोस्ती मेरा श’आर
वो अमल उस का है यारो और ये मेरा तौर है
shukriya
aap ka blog bhi deha bala ki shayri hai aapki apni shayri bhejti rahen
aadil rasheed
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