जो बन संवर के वो एक माहरू निकलता है
तो हर ज़बान से बस अल्लाह हू निकलता है
ये चाँद रात ही दीदार का वसीला है
बरोजे ईद ही वो खूबरू निकलता है
हलाल रिज्क का मतलब किसान से पूछो
पसीना बन के बदन से लहू निकलता है
ज़मीन और मुक़द्दर की एक है फितरत
के जो भी बोया वही हूबहू निकलता है
तेरे बग़ैर गुलिस्ताँ को क्या हुआ आदिल
जो गुल निकलता है बे रंगों बू निकलता है
आदिल रशीद
माहरू= सुन्दर चाँद जैसे चेहरे वाला
अल्लाह हू = हे भगवान्
आदिल रशीद
5 comments:
ज़मीन और मुक़द्दर की एक है फितरत
के जो भी बोया वाही हुबहू निकलता है
fir insaan dono ko kostaa hai mee hee saath aisaa kyon huaa ....waah
"तेरे बग़ैर गुलिस्ताँ को क्या हुआ आदिल
जो गुल निकलता है बे रंगों बू निकलता है"
ख़ूबसूरत बयान है।
Waah! bahut khoob kaha hai Sirji aapne.
shubhkamnayen
जो बन संवर के वो एक माहरू निकलता है
तो हर ज़बान से बस अल्लाह हू निकलता है
Waah! bahut khoob
GAZAL KAA HAR SHER KHOOBSOORAT HAI.
MUBAARAK .
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