ग़ज़ल
अपने हर कौल से, वादे से पलट जाएगा
जब वो पहुंचेगा बुलंदी पे तो घट जाएगा
अपने किरदार को तू इतना भी मशकूक न कर
वर्ना कंकर की तरह से दाल से छट जाएगा
जिसकी पेशानी तकद्दुस का पता देती है
जाने कब उस के ख्यालों से कपट जाएगा
उसके बढ़ते हुए क़दमों पे कोई तन्ज़ न कर
सरफिरा है वो, उसी वक़्त पलट जाएगा
क्या ज़रूरी है के ताने रहो तलवार सदा
मसअला घर का है बातों से निपट जाएगा
आसमानों से परे यूँ तो है वुसअत उसकी
तुम बुलाओगे तो कूजे में सिमट जाएगा
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6 comments:
Gazab ...kamaal ki gazal aur lajawaab sher hain sab ... subhaan alla ...
भाई आदिल जी
आपकी ग़ज़ल के ये दो शेर तो लाजवाब लगे-
क्या ज़रूरी है के ताने रहो तलवार सदा
मसअला घर का है बातों से निपट जाएगा
आसमानों से परे यूँ तो है वुसअत उसकी
तुम बुलाओगे तो कुजे में सिमट जाएगा
खूब ! बहुत खूब !!
उसके बढ़ते हुए क़दमों पे कोई तन्ज़ न कर
सरफिरा है वो, उसी वक़्त पलट जाएगा
क्या ज़रूरी है के ताने रहो तलवार सदा
मसअला घर का है बातों से निपट जाएगा
ye dono sher kuch jyada hi pasand aaye
daad kubool karen
आदिल भाई
आपका ब्लॊग देखा । आप तो बहुत पंहुचे हुए शायर है । मैं भी कुछ समय से ग़ज़लों की विधा को सीखने की कोशिश कर रहा हूँ । कृपया बताने की कृपा कीजिए कि आपकी इस ग़ज़ल कौन सी बहर प्रयोग में आएगी ऒर तक्ती किस प्रकार की जाएगी ।
एक शंका और - कुजे शब्द कुन्जे है या कूजे क्योंकि ’तुम बुलाओगे तो कुजे में सिमट जाएगा’ में मुझे गाते समय कुछ लय में कुछ कमी लग रही है ।
उसके बढ़ते हुए क़दमों पे कोई तन्ज़ न कर
सरफिरा है वो, उसी वक़्त पलट जाएगा
vaah!
पुखराज जी आप का तो नाम ही पुखराज है शेर पसंद आने का शुक्रिया धन्यवाद
शरद तैलंग जी आप गायक है ये आज ही डाक्टर अजय जी से पता चला था खैर आपने पूछा कुजे है या कूजे तो जनाब सही लफ्ज़ कूजे है
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