एक नज़्म पैग़ाम(सन्देश)
चलो पैग़ाम दे अहले वतन को
कि हम शादाब रक्खें इस चमन को
न हम रुसवा करें गंगों -जमन को
करें माहौल पैदा दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
कसम खायें चलो अम्नो अमाँ की
बढ़ायें आबो-ताब इस गुलसिताँ की
हम ही तक़दीर हैं हिन्दोस्ताँ की
हुनर हमने दिया है सरवरी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
ज़रा सोचे कि अब गुजरात क्यूँ हो
कोई धोखा किसी के साथ क्यूँ हो
उजालों की कभी भी मात क्यूँ हो
तराशे जिस्म फिर से रौशनी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
न अक्षरधाम, दिल्ली, मालेगाँव
न दहशत गर्दी अब फैलाए पाँव
वतन में प्यार की हो ठंडी छाँव
न हो दुश्मन यहाँ कोई किसी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
हवाएँ सर्द हों कश्मीर की अब
न तलवारों की और शमशीर की अब
ज़रूरत है ज़बाने -मीर की अब
तक़ाज़ा भी यही है शायरी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
मुहब्बत का जहाँ आबाद रक्खें
न कड़वाहट को हरगिज़ याद रक्खें
नये रिश्तों की हम बुनियाद रक्खें
बढ़ायें हाथ हम सब दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
जय हिंद!
आदिल रशीद
Aadil रशीद
NEW DELHI
9810004373
9811444626
NEW DELHI
9810004373
9811444626
29 comments:
बहुत उम्दा नज़्म.
"हवाएँ सर्द हों कश्मीर की अब
न तलवारों की और शमशीर की अब
ज़रूरत है ज़़बाने -मीर की अब
तक़ाज़ा भी यही है शायरी का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का"
बहुत ही अच्छा ख्याल.
बधाई एवं धन्यवाद.
बहुत ही शानदार और जानदार नज़्म है । बधाई !
'मुहब्बत का जहाँ आबाद रक्खें
न कड़वाहट को हरगिज़ याद रक्खें
नये रिश्तों की हम बुनियाद रक्खें
बढ़ायें हाथ हम सब दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का'
आपने पहली ही मुलाक़ात में दिल को जीत लिया था। तभी से बार-बार आपको पढ़ने-सुनने का मन बना रहता है। बहुत अच्छी नज्म कही है। बधाई। क़रीब-क़रीब इसी ज़मीन पर कुछ माह पहले मैंने एक लघुकथा 'बीती सदी के चोंचले' लिखी थी।
भाई आदिल, बहुत खूब... आज माहौल को इसी किस्म के जज्बे और हौसले की ज़रूरत है. तुमने आगाज़ किया है, अब ज़माना पीछे पीछे आये. एक छोटी सी बात ? हवाएं सर्द हों कश्मीर की अब की जगह हवाएं दिल की हों कश्मीर की अब कहा जाय तो कैसा रहे... खैर, तुम्हारी बुलंद ख्याली अपनी जगह दुरुस्त है.
अशोक गुप्ता
मोबाईल 09871187875
आज अगर हम सियासत के चक्रव्यूह से निकलकर इंसानियत का पाठ पढ़ने के इच्छुक हैं तो भाई आदिल रशीद की नज़्म का मर्म समझना पड़ेगा और उसके सन्देश पर चलना पड़ेगा । तभी हमारा देश तरक्की कर सकता है ।
करें माहौल पैदा दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
कसम खायें चलो अम्नो अमाँ की
बढ़ायें आबो-ताब इस गुलसिताँ की
बहुत ही शानदार नज़म आज इसी पैगाम की जरूरत है\ बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनायें।
कोई धोका किसी के साथ क्यूँ हो
उजालों की कहीं भी मात क्यूँ हो.....
आदिल भाई एक सार्थक और ज़रूरी नज़्म के लिए बधाई.
behatareen paigaam...i salute the spirit...it should be spread all over
bahut badhiyaa
उम्दा !
संदेशपूर्ण ओजस्वी रचना!
आभार !
इस बेहतरीन ग़ज़ल एवं उम्दा सन्देश के लिए आभार।
एक बेहतरीन नज्म ! बधाई !
बहुत ही अच्छी भावना से लिखी गई नज़्म...
बेहद्द खूबसूरत अंदाज़-ए-बयाँ है...
आदरणीय काम्बोज जी, अशोक जी नज़्म को पसन्द करने का धन्यवाद आप् का एक मशवरा है के हवाएं सर्द हों कश्मीर की अब की जगह हवाएं दिल की हों कश्मीर की अब कहा जाय तो कैसा रहे... सर्वप्रथम तो आप का शुक्रिय आप् ने प्रश्न तो किया ये भी एक अच्छी बात है लोग प्रश्न ही नहीं करते तो हुज़ूर सर्द यानी ठन्डा होना इशारा है वरना ये तो विदित ही है के कश्मीर मे ठन्ड ही होती है,
पुरे बन्द क अर्थ देखें
हवाएँ सर्द हों कश्मीर की अब / न तलवारों की और शमशीर की अब / ज़रूरत है ज़बाने मीर की अब / तक़ाज़ा भी यही है शायरी का / यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का /
आप् का अनुज
आदिल रशीद
बन्धु आदिल जी
आपकी नज़्म आपकी सोच पढ़ती है. मैं ऐसे मित्रों को हर पल ढ्ढ़ता रहा हूं ...... आज आप भी मिले .... बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर. अभी हम सबको बहुत कुछ करना है. जरा इसे भी पढ़ियेगा
कहां है दीन और इस्लाम .... हे राम.! [कविता] - श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’
http://trishakant.blogspot.com
बाशिद चाचा ......
कहां हो तुम,
तुम्हारे ......
पंडी जी का बेटा
तुम्हारा दुलारा मुन्ना
हास्पिटल के वार्ड से
अपनी विस्फोट से
चीथड़े हुयी टांग......
शायद अब भी मनाते होंगे
होली और ईद साथ साथ
ज़न्नत या स्वर्ग .....
शरीफ़ुल और इकबाल भैया
हिज़ाब के पीछे से झांकती
भाभीजान का टुकटुक मुझे ताकना
........
..... कहां खो गया सब
औरतों को ले जाते हुये
लहड़ू में.... पूजा के लिये
हाज़ी सा दमकता...
वो तुम्हारा चेहरा
मंदिर पर भज़नों के बीच
ढोलक पर मगन चच्ची
छीन लिये हैं आज...
वोट वालों ने हमसे हमारे बच्चे...
और भर दिये हैं उनकी मुठ्ठी में
नफ़रत के बीज
कहां है दीन और इस्लाम
हे राम........!
Bahut sundar Nazm. Desh aur deshwaasiyon ke hit me.
आदिल साहब, शुक्रिया! लिंक भेजने और इतनी खुबसूरत नज्म पढ़वाने के लिए।
मुहब्बत का जहाँ आबाद रक्खें
न कड़वाहट को हरगिज़ याद रक्खें
नये रिश्तों की हम बुनियाद रक्खें
बढ़ायें हाथ हम सब दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का..........
आज समाज को इसी मार्गदर्शन की जरूरत है .......
चलो पैग़ाम दे अहले वतन को
कि हम शादाब रक्खें इस चमन को
न हम रुसवा करें गंगों -जमन को
करें माहौल पैदा दोस्ती का
यही मक़सद बना लें ज़िन्दगी का
Wah! Kya gazab kee nazm hai...aankhen nam ho aayeen!
बहुत-बहुत उम्दा रचना. वाह! और क्या कहूं इक़ मुकम्मल नज़्म!
जारी रहें.
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कुछ ग़मों के दीये
हर एक बात खरी कितनी सीधी सच्ची और सकारात्मक बातें सही मार्ग दर्शन करती हुई. बेहतरीन नज़्म
SAAMYIK NAZM KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA .
Aadil bhai,
bahut umda khayaal. ek behtareen nazm keliye badhai sweekaaren.
आदिल जी आप की नज्म ने मन को छुआ है .मानवीय संवेदना को शब्दों में उकेरने के लिए बधाई .
बहुत उम्दा नज़्म.
Bahut hi khoobsurat bhav liye hue rachna hai. sach hi bahut achha laga aapko padhna.
shubhkamnayen
Bahut hi khoobsurat bhav liye hue rachna hai. sach hi bahut achha laga aapko padhna.
shubhkamnayen
Bahut hi khoobsurat bhav liye hue rachna hai. sach hi bahut achha laga aapko padhna.
shubhkamnayen
aap sab ka shukriya dhanyvaad mamnoon o mashkoor hun
aadil rasheed
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