संडीला ज़िला हरदोई का बाबा झाड़ी शाह का उर्से मुबारक पर 27वां आल इंडिया मुशायरा हर साल की तरह इस साल भी 11 नवम्बर को अपने पूरे अदबी मेयार के साथ मुनक़्क़द किया गया मुशायरे का इफ्तेताह हर दिल अज़ीज़ पूर्व मंत्री जनाब अब्दुल मन्नान साहेब ने किया अपनी तक़रीर में अब्दुल मन्नान साहेब ने मुशायरों में बढ़ती कम्युनल शायरी पर इज़हार के तश्वीश किया उन्होंने ये भी कहा कि जहां मुशायरों कविसम्मेलनों में मंदिर मस्जिद हिन्दू मुस्लिम पर अशआर पढ़के अदब और समाज को बांटने का रिवाज हो गया है वहीं खुदा का शुक्र है कि संडीला का ये मुशायरा खालिस मुहब्बत और अदबी शायरी के लिए पहचाना जाता है और इसमें हिन्दू मुस्लिम एक बराबर शरीक होते हैं, मेला इंचार्ज क़दीर पहलवान ने भी कहा कि बाबा झाड़ी शाह का सालाना उर्स के मुशायरे में सिर्फ मुहब्बत, वतन परस्ती, की बात होती है नफरत की शायरी के लिए यहां कोई जगह नहीं है सरपरस्त मेला सद्र सूफी मुहम्मद इदरीस शाह मंसुरिया सज्जादा नशीन सूफी शाहनवाज़ आलम मेला सेक्रेटरी वसीम शेख वालिदा के इंतक़ाल की वजह से मुशायरा गाह में तशरीफ़ न ला सके सभी मौजूद शोअरा और मेहमानान ने मरहूमा के लिए अल्लाह से दुआ ए मग़फ़िरत की , मुशायरे का आगाज़ मोहम्मद अफ़ज़ल संडीलवी ने अपनी नाते पाक से किया निज़ामत देवास मध्यप्रदेश से आये मक़बूल नाज़िम इस्माइल नज़र देवासी Ismaeel Nazar ने की सदारत बुज़ुर्ग उस्ताद शायर ख़लील फरीदी रायबरेलवी ने की मुशायरा सुबह 4 बजे तक चला मुशायरे के इखत्ताम पर कन्वीनर अमान अली Aman Ali ने सभी का शुक्रिया अदा किया
वो लड़की क्या बताऊँ तुमको कितनी खूबसूरत थी
बस अब ऐसा समझ लीजे परी सी खूबसूरत थी
हवा के जैसी थी चंचल,नदी के जैसी थी निर्मल
महक उसके बदन की ज्यूँ महकता है कोई संदल
सुनहरी ज़िंदगी के थे हसीं गुलदान आँखों में
बसाये रखती थी साजन के जो अरमान आँखों में
वही जो आईने के सामने सजती संवरती थी
वो शर्मीली सी इक लड़की जो खुद से प्यार करती थी
वही जो आईने के सामने घूंघट उठाती थी
उठा कर अपना ही घूँघट जो खुद से ही लजाती थी
वही जो फूल के जैसे ही हंसती खिलखिलाती थी
ये दुनिया खूबसूरत है वो हर इक को बताती थी
ये दुनिया खूबसूरत है वो अब इनकार करती है
वो लड़की आईने के सामने जाने से डरती है
ये शतरूपा की बेटी है,यही हव्वा की बेटी है
यही ज़ैनब, यही मरयम, यही राधा की बेटी है
जिसे अल्लाह ने पैदा किया है मर्द की ख़ातिर
वो कितने दुःख उठाती है उसी हमदर्द की ख़ातिर
सता कर जो भी मासूमों को खुद को मर्द कहते हैं
जो इन्सां हैं वो ऐसे लोगों को नामर्द कहते हैं
अब इन वहशी दरिंदो को यूँ गर्क़ ए आब कर दीजे
सज़ा तेज़ाब की दुनिया में बस तेज़ाब कर दीजे
आदिल रशीद
ग़र्क़ ए आब = पानी में ग़र्क़ करना, पानी में डुबो देना
आदिल =न्याय करने वाला
acid victim poem aadil rasheed
इस रचना को बिना मेरी अनुमति कहीं प्रकाशित करना अनुचित है ...आदिल रशीद
+91 9811444626 — with Babita Solanki and 23 others.
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